लेह-लद्दाख इन दिनों लगातार सुर्खियों में है। केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद से ही स्थानीय लोगों की मांगें और नाराज़गी बढ़ती जा रही हैं। ताज़ा घटनाओं में हिंसा और प्रदर्शन ने माहौल को और भी तनावपूर्ण बना दिया है। इस पूरे विवाद में पर्यावरणविद् और सामाजिक कार्यकर्ता Sonam Wangchuk का नाम बार-बार सामने आ रहा है।
Ladakh की पहचान खतरे में है
दरअसल, Sonam Wangchuk ने अपने एक भाषण में कहा था कि Ladakh की पहचान और संस्कृति खतरे में है। यदि समय रहते विशेष संवैधानिक दर्जा और संसाधनों पर स्थानीय लोगों का हक़ सुनिश्चित नहीं किया गया, तो आने वाली पीढ़ियाँ हमें माफ़ नहीं करेंगी।”
उनके इस बयान को युवाओं और प्रदर्शनकारियों ने सीधी चेतावनी की तरह लिया। परिणामस्वरूप हजारों की संख्या में लोग सड़कों पर उतर आए और आंदोलन ने तेज़ी पकड़ ली।
Sonam Wangchuk संसाधनों और पर्यावरण पर चिंता
Sonam Wangchuk का मानना है कि Ladakh के पर्यावरण और भूगोल को बचाने के लिए यहाँ की भूमि और संसाधनों पर बाहरी दख़ल कम होना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि अगर केंद्र सरकार ने आवाज़ों को अनसुना किया, तो आंदोलन और तेज़ हो सकता है।
सरकार ने Sonam Wangchuk पर भड़काऊ बयानबाज़ी का लगाया आरोप
सरकार का आरोप है कि हिंसा की वजह भड़काऊ बयानबाज़ी और गलतफहमियाँ हैं। अधिकारियों का कहना है कि वांगचुक जैसे प्रभावशाली लोगों को जनता की भावनाओं को भड़काने के बजाय समाधान की दिशा में काम करना चाहिए।वहीं, वांगचुक ने हिंसा की निंदा करते हुए कहा है कि उनका मक़सद किसी भी तरह की अशांति फैलाना नहीं, बल्कि शांतिपूर्ण तरीक़े से लोगों की समस्याओं को सामने लाना है।
Leh ladakh का भविष्य किस ओर?
लद्दाख की जनता आज भी पर्यावरण संरक्षण, रोज़गार, स्थानीय पहचान और संसाधनों पर हक़ की मांग कर रही है। लेकिन सवाल यह है कि क्या आंदोलन की दिशा सही है या यह हिंसक मोड़ लेकर क्षेत्र के भविष्य को और जटिल बना देगा?
Sonam Wangchuk का बयान बना चिंगारी निश्चित ही, सोनम वांगचुक का यह बयान आने वाले समय में लद्दाख की राजनीति और सामाजिक संरचना पर गहरा असर डालेगा। अब यह देखना होगा कि सरकार और स्थानीय नेतृत्व इस टकराव को संवाद में कैसे बदलते हैं।