अमेरिका में संघीय US Shutdown 2025 की आशंका ने न केवल राजनीतिक हलकों बल्कि आम नागरिकों और वैश्विक अर्थव्यवस्था में भी हलचल मचा दी है। बजट पर सहमति न बनने की स्थिति में सरकार का आंशिक कामकाज ठप हो सकता है, जिससे हर दिन करोड़ों डॉलर का आर्थिक नुकसान होगा। विशेषज्ञों का कहना है कि यह नुकसान केवल सरकारी स्तर पर ही नहीं, बल्कि आम जनता और निजी क्षेत्रों पर भी गहरा असर डालता है।
कर्मचारियों पर सीधा असर
शटडाउन (US Shutdown) की स्थिति में बड़ी संख्या में सरकारी कर्मचारी वेतन से वंचित हो जाते हैं। लाखों कर्मचारियों को या तो बिना वेतन के काम करना पड़ता है या फिर उन्हें अस्थायी रूप से छुट्टी पर भेज दिया जाता है। इससे उनके परिवार की आर्थिक स्थिति पर सीधा असर पड़ता है। खासकर मध्यम और निम्न आय वर्ग के कर्मचारी अपने खर्चों और बिलों को संभालने में कठिनाई महसूस करते हैं।
US Shutdown से उद्योग और सेवाओं पर प्रभाव
आर्थिक विशेषज्ञ बताते हैं कि शटडाउन जितना लंबा खिंचता है, उसका असर उतना ही व्यापक होता है। पर्यटन, परिवहन और स्वास्थ्य जैसे क्षेत्र इससे तुरंत प्रभावित होते हैं। उदाहरण के लिए, राष्ट्रीय पार्क और म्यूज़ियम बंद हो जाते हैं, जिससे पर्यटन उद्योग को बड़ा झटका लगता है। वहीं, पासपोर्ट और वीज़ा से जुड़े काम धीमे पड़ जाते हैं, जिससे यात्रियों को परेशानी झेलनी पड़ती है।
निजी कंपनियों को भी बड़ा झटका
निजी कंपनियां भी इससे अछूती नहीं रहतीं। जब सरकारी विभागों का कामकाज बाधित होता है तो ठेकेदार कंपनियों को भुगतान में देरी होती है और प्रोजेक्ट्स अटक जाते हैं। इससे व्यापारिक माहौल में अनिश्चितता बढ़ जाती है और निवेशकों का भरोसा डगमगा जाता है। यही कारण है कि शेयर बाजार भी शटडाउन की आशंका से प्रभावित होता है।
वर्क फोर्स की उत्पादकता पर असर
वर्कफोर्स के लिहाज़ से देखें तो यह स्थिति कर्मचारियों की मनोस्थिति पर भी असर डालती है। जब वेतन की गारंटी नहीं होती, तो कामकाज की दक्षता और उत्पादकता घट जाती है। विशेषज्ञ मानते हैं कि लगातार ऐसे संकट कर्मचारियों के मनोबल को कमजोर कर सकते हैं और यह लंबी अवधि में संस्थागत ढांचे को नुकसान पहुंचाता है।
वैश्विक स्तर पर दबाव
हालांकि US Shutdown हमेशा अस्थायी होता है और बाद में समाधान निकल आता है, लेकिन जब तक यह चलता है, तब तक इसका आर्थिक और सामाजिक दबाव बहुत भारी पड़ता है। अमेरिका जैसी बड़ी अर्थव्यवस्था में रोज़ाना का यह घाटा केवल राष्ट्रीय स्तर पर ही नहीं बल्कि वैश्विक स्तर पर भी असर डालता है। यही कारण है कि दुनिया की निगाहें इस पर टिकी रहती हैं कि अमेरिकी नेतृत्व कब तक बजट गतिरोध को दूर कर पाता है।