नागपुर में विजयादशमी उत्सव के अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख Mohan Bhagwat ने समाज को एक गहरी और सकारात्मक सीख दी। उन्होंने कहा कि हर व्यक्ति की अपनी मान्यताएं और आस्थाएं होती हैं, जिनका सम्मान करना सभी की जिम्मेदारी है। यह कथन केवल एक सामान्य सलाह नहीं था, बल्कि समाज में आपसी सौहार्द और सहिष्णुता बनाए रखने का स्पष्ट संदेश था।
Mohan Bagawat का विविधता को स्वीकारने का आह्वान
भागवत ने कहा कि विविधता हमारे समाज की विशेषता है। लेकिन यदि इसे सम्मान और समझ के साथ नहीं स्वीकार किया गया तो यह विभाजन और तनाव का कारण बन सकती है। उन्होंने समझाया कि हमें भिन्नताओं को दूर करने की बजाय उन्हें अपनाना चाहिए और संवाद का रास्ता चुनना चाहिए। असहमति रखना स्वाभाविक है, आलोचना करना भी अधिकार है, लेकिन यह सब शांतिपूर्ण और मर्यादित तरीके से होना चाहिए।
हिंसा और उपद्रव से बचने की अपील
अपने भाषण में उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि हिंसा, उपद्रव या गुंडागर्दी किसी भी रूप में समाज के लिए हानिकारक है। बदलाव के लिए आक्रामकता या डर का सहारा लेना केवल अस्थिरता लाता है। उन्होंने जोर देकर कहा कि सामाजिक मतभेदों का समाधान केवल संवाद और समझदारी से ही संभव है।
जातिगत विविधता पर विचार
संघ प्रमुख ने जातिगत विविधता का विशेष रूप से उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि यह हमारे समाज की वास्तविकता है और इसे नकारा नहीं जा सकता। लेकिन यदि इसे संघर्ष का आधार बनाने की बजाय एकता का हिस्सा माना जाए, तो यह समाज को और मजबूत बना सकती है।
संघ का शताब्दी वर्ष और प्रधानमंत्री की प्रतिक्रिया
यह भाषण इसलिए भी महत्वपूर्ण रहा क्योंकि इस वर्ष आरएसएस अपना शताब्दी वर्ष मना रहा है। ऐसे समय में दिया गया यह संदेश संघ की भावी दिशा और दृष्टि को स्पष्ट करता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी मोहन भागवत के इस संबोधन की सराहना की और इसे प्रेरणादायक और मार्गदर्शक बताया।
सहिष्णुता और संवाद की राह
Mohan Bagawat का यह संबोधन समाज के लिए एक सॉफ्ट अपील जैसा था—जहां कठोर शब्दों या विवादित विचारों की जगह संयम और सहिष्णुता का स्वर अधिक मुखर दिखाई दिया। उन्होंने कहा कि हमें अपने विचारों और आस्थाओं को व्यक्त करने का पूरा अधिकार है, लेकिन दूसरों के विश्वास का अपमान किए बिना। यही दृष्टिकोण हमें एक सशक्त, समरस और शांतिपूर्ण समाज की ओर ले जा सकता है।