अमरीन अहमद
भारत के सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को पूजा स्थलों से जुड़े मामलों की सुनवाई को अप्रैल के पहले सप्ताह तक के लिए टाल दिया। यह सुनवाई 1991 के पूजा स्थल (विशेष उपबंध) अधिनियम को चुनौती देने वाली याचिकाओं से संबंधित है। मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने कहा कि इस मामले को अब तीन-न्यायाधीशों की पीठ द्वारा सुना जाएगा। सुनवाई के दौरान, सुप्रीम कोर्ट ने बार-बार दायर हो रही नई याचिकाओं पर नाराजगी जताई। मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह की ओर से दायर एक नई याचिका पर टिप्पणी करते हुए कहा,”हर चीज़ की एक सीमा होती है। इतनी ज्यादा अंतरिम याचिकाएं दायर हो रही हैं कि हम सभी को सुन भी नहीं सकते।”
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पृष्ठभूमि और अदालत के पुराने आदेश
12 दिसंबर 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने लगभग 18 मामलों पर रोक लगाई थी। इन मामलों में कुछ हिंदू संगठनों द्वारा ज्ञानवापी मस्जिद (वाराणसी), शाही ईदगाह मस्जिद (मथुरा) और शाही जामा मस्जिद (संभल) के सर्वे की मांग की गई थी, ताकि उनके मूल धार्मिक स्वरूप का पता लगाया जा सके। इससे पहले, इन स्थानों को लेकर हुई हिंसा में चार लोगों की मौत हो चुकी थी। सुप्रीम कोर्ट ने पहले इन मामलों की सुनवाई 17 फरवरी 2025 को तय की थी, लेकिन अब यह अप्रैल में होगी।
नई याचिकाएं और राजनीतिक माहौल
12 दिसंबर 2024 के फैसले के बाद, कई नए याचिकाकर्ता सामने आए हैं, जिनमें AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी, समाजवादी पार्टी नेता इकरा चौधरी, और कांग्रेस पार्टी शामिल हैं। ये याचिकाकर्ता 1991 के पूजा स्थल अधिनियम को लागू करने की मांग कर रहे हैं, जो यह सुनिश्चित करता है कि 15 अगस्त 1947 के बाद पूजा स्थलों का धार्मिक स्वरूप बदला न जाए। मुख्य न्यायाधीश खन्ना ने इस मामले में बढ़ती याचिकाओं पर चिंता जताई और कहा कि सुप्रीम कोर्ट को अपने काम का बोझ संतुलित तरीके से संभालना होगा।
मुख्य बिंदु:
सुनवाई स्थगित: सुप्रीम कोर्ट ने अप्रैल 2025 के पहले सप्ताह तक सुनवाई टाल दी।
न्यायालय की नाराजगी: लगातार दायर हो रही याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने चिंता जताई।
बड़ी बेंच में सुनवाई: अब इस मामले को तीन-न्यायाधीशों की पीठ सुनेगी।
राजनीतिक माहौल गरमाया: विभिन्न राजनीतिक दलों ने इस मुद्दे पर अपनी याचिकाएं दाखिल की हैं।
अप्रैल में होने वाली सुनवाई इस कानून के भविष्य को तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी, क्योंकि यह मामला कानूनी, धार्मिक और राजनीतिक रूप से संवेदनशील है।